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किसी नेता, मंत्री व प्रशासनिक अधिकारी की बेटी की शादी में जरा सोचिए कितना खर्च होता होगा। मेरे ख्याल से लाखों में। पर सरकार के यही नुमाईंदे एक गरीब की बेटी की शादी के खर्चे के लिए महज बीस हजार रूपए ही पर्याप्त मानते हैं। तभी तो गरीबों की बेटी की शादी के लिए दिये जाने वाले अनुदान की राशि महज बीस हजार रूपए ही निर्धारित की गई है। कैसी व्यवस्था है आप अपनी बेटी की शादी में लाखों लगा कर धूमधाम से उसकी शादी करते हैं और आप को अपना अगुवा चुनने वाले गरीब अपनी बेटी के हाथ महज बीस हजार रूपए में पीले कर दें। एक पिता के लिए बेटी का ब्याह किसी तीर्थ पुण्य से कम नहीं पिता बेटी की शादी में पिता अपने सारे अरमान पूरे करना चाहता है लेकिन महज बीस हजार रूपए में वह इंतजाम क्या करे। आज महंगाई चरम है । एक एक धर्मशाला किराये पर लेने जाए तो 25 से 30 हजार रूपए लग जाते है और शासन गरीब की बेटी की पूरी शादी का खर्चा बीस हजार रूपए दे रहा है। शर्म नहीं आती है चुनाव में जिन गरीबों को सब्जबाग दिखा कर उनसे वोट लेने के बाद नेता जी सदन में पहुंचते हैं वही बाद में इन्हें भूल जाते हैं। दुर्भाग्य से एक मंत्री जी की बेटी की शादी में जाने का मौका मिला देखा जो कालीन जमीन पर बिछाई गई थी वह 30 हजार रूपए में आई थी। बात यहीं तक रहती तो क्या था इस बीस हजार रूपए को पाने के लिए गांव के एक गरीब को कितने चक्कर सरकारी विभागों के लगाने पडते है यह बात कभी उनके कलेजे से पूंछिए लेकिन क्या करें प्यारी बिटिया को डोली में चढाना है तो जो भी समस्या आए शिरोधार्य। बीस हजार पाने के लिए ब्लाक से शुरू होने वाली दौड में सरकारी कर्मचारी कमीशन पहले ही तय कर लेते हैं। अरे भाई इन्हें तो छोड दो । उसके बाद समाजकल्याण और फिर अन्य विभागों के चक्कर काटते-काटते आखिर पहुंच जाते हैं माननियों के पास। जहां उनके फार्म पर दस्तखत से पहले अपने शुभचिंतक देखे जाते हैं। देखरेख के इस तमाशे में कई गरीबों के बेटी की शादिया ही खतरे में पड जाती हैं। फिर कर्ज लिया और शादी की, बाद में उस कर्ज को चुकाने के लिए अपनी जमीन बेंच कर बेकार हो जाते हैं गरीब। गरीबों की त्रासदी यहीं नहीं खत्म होती उनके जीवन में झांके तो दु:खों का एक ऐसा भंवर दिखाई देगा। गरीबों की इस दशा पर किसी शायर की लेखनी रोती है।
सुख के सपनों पर गिरी, आंसू की इक गाज
कठिन गरीबी का गठित, दु:ख था रोटी प्याज।।
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