ओरक्षा की तरह अयोध्या में कब राम राज आएगा। कब भगवान राम संगीनों के साए से बाहर आकर अपनी प्रजा के लिए अपना दुर्शन सुलभ करेंगे। आप सोच रहे होंगे की मैने अयोध्या की तुलना ओरक्षा से क्यों कि। हाल ही में एक लेख पढा जो विचारों में कौंध गया। अयोध्या का रहने वाला हूं तो यह विचार स्वत: ही मन में उठने लगे। राजा हरदौल की पवित्र नगरी बुंदेलखंड के ओरछा में अब भी ‘राम राज’ कायम है। यहां लोग मर्यादा पुरुषोत्ताम श्रीराम की पूजा राजा के रूप में करते है। यही नहीं मध्य प्रदेश की पुलिस चारों पहर की आरती में भगवान श्रीराम को ‘गार्ड आफ आनर’ देती है। फिर अयोध्या के बारे में सोचा जहां स्वयं भगवान राम का जन्म हुआ था। जहां वास्तव में रामराज की परिकल्पना की जा सकती है वहां स्वयं भगवान राम संगीनों के साये में हैं। गार्ड आफ आनर की कौन कहे, अयोध्या में उनका जन्म स्थान ही विवादित है। अयोध्या में आतंकवाद का ऐसा ग्रहण लगा की रामराज की भावना पर भय आकर बैठ गया। मंदिर-मस्जिद के नाम पर दो समुदायों को ऐसा बांटा गया कि विवादित ढांचा गिराए जाने को लेकर यौम-ए-गम और शौर्य दिवस की एक परम्परा ही यहां कायम हो गई। अयोध्या का विकास पिछडता चला गया और इस मामले में सिर्फ राजनीतिक दल ढोल पीडते रहे। या हूं कहें कि राजनीतिक के लिए संजीनवनी बन कर अयोध्या खुद बेजान हो गई। विवादित परिसर का मामला न्यायालय में विचाराधीन होने के बावजूद राजनीतिक दल बार-बार इस मुद्दे को उठा कर अयोध्या के सौहार्द से खिलावाड करते रहे हैं। विवादित परिसर को बचाने के लिए पहरा इतना कडा हुआ कि परिसर के इर्द-गिर्द मोहल्लों में शहनाई तक पर पबंदी लगने लगी है। अयोध्या में फैले आतंक के बादल ने यहां के हर वर्ग को चोट पहुंचाई। पुराणों में अयोध्या के जिस रामराज का वर्णन है उस आधार पर रामराज के बारे में कहना गलत नहीं होगा कि रामराज्य में कोई दरिद्र, दु:खी या दीन नहीं था। छुआछूत का भेदभाव नहीं था। सरयू के `राजघाट’ पर चारों वर्णां के लोग साथ-साथ स्नान करते थे-
रामघाट सबु विधि सुंदर वर। मज्जहिं तहाँ बरन चरिउ नर।।
रामराज का यह दृश्य अब क्योंकि नहीं है। आज अयोध्या की जनता उसी रामराज को तलाश रही है।
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