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देखा मधुमक्खियों का दीवानापन

अभेद्य
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आइए इस सत्‍य घटना में कुछ मनोरंजन तलाशते हैं-

अच्‍छा हुआ मधुमक्खियों की जान तो बची वरना मुख्‍यमंत्री के अगल-बगल मंडराने पर उन्‍हें सजा-ए-मौत तो मिलना तय था। सुरक्षाकर्मी मार पाते या नहीं लेकिन दो चार मंत्री जरूर मधुमक्खियों को मारडालते। और मारते भी क्‍यों न जिस मंच तक पहुंचने के लिए उन्‍हें न जाने क्‍या-क्‍या करना पडना उस मंच पर कोई ऐसे उडान भरता पहुंच जाए ये बात तो बर्दाश्‍त के बाहर है ही। शुक्र मनाईये नोटो की माला का की सबका ध्‍यान उधर है, वरना दो चार मधुमक्खियों का शहीद होना तय था। वैसे मधुमक्खियों की इस हठधर्मिता पर डा कुमार विश्‍वास का एक लाजवाब शेर याद आ रहा है जरा गौर फरमाईयेगा बडा खोद के निकाला है पढियेगा मस्‍ती के साथ पढियेगा, जहां पहुंचाना चाह रहा हूं वहीं पहुंचिएगा वरना वरना बात स्लिप हो सकती है- अर्ज है- भ्रमर कोई कुमुदनी पर मचल बैठा तो हंगामा, हमारे (मधुमक्खियों) दिल में कोई ख्‍वाब पल बैठा तो हंगामा, हम उडते हैं तो हंगामा हम रूकते हैं तो हंगामा।। अरे भाई सीएम साहब सब की सुनती हैं लेकिन मधुमक्खियों की समझ में नहीं आता आखिर इंसान नहीं है। लेकिन जांच तो शुरू ही हुई देर सबेर सजा भी मिलेगी अब किस मधुमक्खि को सजा मिलेगा यह तो समय बताएगा। वैसे भी इस सरकार ने प्रदेश को भय मुक्‍त रखने की ठानी है। ऐसे में सीएम को डराने वाली मधुमक्खियां बच गईं तो विपक्ष को एक और मुद्दा मिल जाएगा कि जनता को परेशान करने के लिए रैली में मधुमक्खियां बुलाई गईं थी। फिलहाल मधुमक्खि और उन्‍हें उडाने वाले दोनो के लिए अच्‍छा समय नहीं है। चलते-चलते मधु मक्खियों के इस दीवानेपन और भाषण को लेकर तटस्‍थ मुख्‍यमंत्री को देखकर फिर कुमार विश्‍वास का एक शेर याद आ गया गौर मरमाईएगा-मधुमखियों की ओर से है। -इस धरती से उस अंबर तक दो ही चीज गजब की है, एक तो तेरा (मुख्‍यमंत्री) भोलापन है एक मेरा (मधुमक्खियां) दीवानापन।। जो मंच तक जा पहुंची। अब , भोगो जाने कौन सा मेमोरेंडम देना था जो सुरक्षा का ख्‍याल किये बिना जानजोखिम में डाल कर मंच तक पहुंच गई।

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